सामाजिक कुरुतियों की रोकथाम में योग की प्रासंगिकता

Authors

  • सेतवान शोध छात्र, योग विज्ञान विभाग, गुरुकुल कांगडी सम.वि.वि.,हरिद्वार
  • उधम सिंह Asstt. Professor, योग विज्ञान विभाग, गुरुकुल कांगडी सम.वि.वि.,हरिद्वार

Keywords:

सामाजिक कुरुतियां, संस्कृति, योग, समाज

Abstract

भारतवर्ष विभिन्नताओं का देश है यहां अनेक धर्मों, जातियों, संप्रदायों के लोग निवास करते हैं, जिनका रहन-सहन भाषा- बोली पहनावा मान्यताएं परस्पर भिन्न है यहां कदम-कदम पर भाषा बदल जाती है, परंतु यह भारत की पहचान है कि अनेकता में एकता दिखाई देती है वहीं दूसरी ओर यह विभिन्न सामाजिक कुरुतियों को जन्म देती है, यह सामाजिक कुरुतियाँ कहीं क्षेत्रवाद के कारण कहीं जातिवाद के कारण तो कहीं भाषावाद के कारण या फिर विभिन्न सम्प्रदाय के कारण समाज में दिखायी देती हैं। भारत में अनेक धर्म एवं सम्प्रदाय फलते-फूलते रहें हैं। उनके अलग- अलग रीति रिवाज होते हैं। यह सभी लोग अपनी अपनी श्रेष्ठता को प्रदर्शित करने के लिए विभिन्न प्रकार के आयोजन करते रहते हैं ऐसी परिस्थितियों में जब एक दूसरे के अहम को ठेस पहुंचती है तो विरोध की स्थिति उत्पन्न होती है, जिससे आपस में एक दूसरे को नुकसान पहुंचाने की दृष्टि से लड़ाई दंगे चोरी मारपीट आदि सामाजिक अव्यवस्थाओं का उदय होता है, जिसके कारण समाज में अनेक सामाजिक कुरुतियाँ उत्पन्न होती हैं। देश में अंधविष्वास जातिवाद, सम्प्रदायवाद, क्षेत्रवाद, दहेज प्रथा आदि पैर पसारे हुए हैं इनके दुष्परिणाम समाज में स्पष्ट रूप से देखे जा सकते हैं जिनके कारण बेरोजगारी, अशिक्षा, भुखमरी, ऊंच-नीच छुआ-छूत आदि घटनाएं समाज में देखने को मिलती हैं। योग के ज्ञान (यम, नियम) एवं अभ्यास द्वारा उपरोक्त कुरूतियों का निवारण कैसे हो सकता है इस शोध पत्र में यह दर्शाने का प्रयास किया गया है।

Author Biographies

सेतवान, शोध छात्र, योग विज्ञान विभाग, गुरुकुल कांगडी सम.वि.वि.,हरिद्वार

हरिद्वार

उधम सिंह, Asstt. Professor, योग विज्ञान विभाग, गुरुकुल कांगडी सम.वि.वि.,हरिद्वार

हरिद्वार

References

ऽ शुद्रो ब्राह्मणतामेतिब्राह्मणश्चैति शूद्रतामद्य 10/65 कुमार सुरेन्द्र (जुलाई २००६) विशुद्ध मनुस्मृति (पंचम संस्करण) आर्ष साहित्य प्रचार ट्रस्ट 455 ,खारी बाबली ,दिल्ली 110006 पृष्ठ संख्या ५०१

ऽ यत्र नार्यस्तु पूज्यते रमंते तत्र देवताःद्य 3/56 कुमार सुरेन्द्र (जुलाई २००६) विशुद्ध मनुस्मृति (पंचम संस्करण) आर्ष साहित्य प्रचार ट्रस्ट 455 ,खारी बाबली ,दिल्ली 110006 पृष्ठ संख्या १८४

ऽ ूू.मेंलेपदीपदकप.बवउ

ऽ अथं योगानुशासनम-1/गोयन्दका हरिकृष्णदास (संवत् 2076) पातंजल योगदर्शन (प्रथम संस्करण) गीता प्रेस गोरखपुर

ऽ अहिंसा सत्य अस्तेय ब्रह्मचर्य परिग्रह यमः 2/30 गोयन्दका हरिकृष्णदास (संवत् 2076) पातंजल योगदर्शन (प्रथम संस्करण) गीता प्रेस गोरखपुर

ऽ शौचसंतोषतपःस्वध्ययेश्वरप्रणिधानानि नियमः 2/32 गोयन्दका हरिकृष्णदास (संवत् 2076) पातंजल योगदर्शन (प्रथम संस्करण) गीता प्रेस गोरखपुर

ऽ अहिंसाप्रतिष्ठायामतत्सन्निधौ वैरत्यागाः 2/35 गोयन्दका हरिकृष्णदास (संवत् 2076) पातंजल योगदर्शन (प्रथम संस्करण) गीता प्रेस गोरखपुर

ऽ सत्यप्रतिष्ठायाम क्रियाफलाश्रयत्वम2/36 गोयन्दका हरिकृष्णदास (संवत् 2076) पातंजल योगदर्शन (प्रथम संस्करण) गीता प्रेस गोरखपुर

ऽ अस्तेयप्रतिष्ठायां सर्वरत्नोपस्थानम 2/37 गोयन्दका हरिकृष्णदास (संवत् 2076) पातंजल योगदर्शन (प्रथम संस्करण) गीता प्रेस गोरखपुर

ऽ आहारस्य परमधामं ........मरणं वा नियच्छति।। च.नि. 6/9

ऽ ब्रह्मचर्यप्रतिष्ठायां वीर्यलाभः 2/38 गोयन्दका हरिकृष्णदास (संवत् 2076) पातंजल योगदर्शन (प्रथम संस्करण) गीता प्रेस गोरखपुर

ऽ अपरिग्रहस्थैर्ये जन्मकथन्तासंबोधः 2/39 गोयन्दका हरिकृष्णदास (संवत् 2076) पातंजल योगदर्शन (प्रथम संस्करण) गीता प्रेस गोरखपुर।

ऽ शौचतस्वन्गजुगुप्सा परैरसंर्स्ग”ः 2/40 गोयन्दका हरिकृष्णदास (संवत् 2076) पातंजल योगदर्शन (प्रथम संस्करण) गीता प्रेस गोरखपुर।

ऽ संतोषदनुत्तमसुखलाभः 2/42 गोयन्दका हरिकृष्णदास (संवत् 2076) पातंजल योगदर्शन (प्रथम संस्करण) गीता प्रेस गोरखपुर।

ऽ करमन्येवाधिकारस्तेमाफलेशुकदाचना 2/47 गोयन्दका जयदयाल, 2005 ,श्री मद्भाभगवदगीता तत्व-विवेचन, हिंदी टीका, गीताप्रेस, गोरखपुर।

ऽ ततो द्वन्दानभिघातः 2/48 गोयन्दका हरिकृष्णदास (संवत् 2076) पातंजल योगदर्शन (प्रथम संस्करण) गीता प्रेस गोरखपुर।

ऽ स्वाध्यायादिष्टदेवतासंप्रयोगः 2/44 गोयन्दका हरिकृष्णदास (संवत् 2076) पातंजल योगदर्शन (प्रथम संस्करण) गीता प्रेस गोरखपुर।

ऽ कायानु पश्यना- बौद्ध जुगलकिशोर आचार्य विपस्सना सम्यक प्रकाशन पृष्ठ सं 81-32/3, पश्चिमपुरी, नई दिल्ली-110063

ऽ वेदानु पश्यना-बौद्ध जुगलकिशोर आचार्य- विपस्सना सम्यक प्रकाशन पृष्ठ सं.84-32/3,पश्चिमपुरी,नई दिल्ली-110063

ऽ चित्तानु पश्यना- बौद्ध जुगलकिशोर आचार्य- विपस्सना सम्यक प्रकाशन पृष्ठ सं.85-32/3, पश्चिमपुरी, नई दिल्ली-110063

ऽ धर्मानुपश्यना- बौद्ध जुगलकिशोर आचार्य- विपस्सना सम्यक प्रकाशन पृष्ठ सं.86-32/3, पश्चिमपुरी, नई दिल्ली-110063

ऽ तपःस्वाध्यायेश्वरप्रणिधानानि क्रियायोगः2/1 गोयन्दका हरिकृष्णदास (संवत् 2076) पातंजल योगदर्शन (प्रथम संस्करण) गीता प्रेस गोरखपुर

ऽ समधिसिद्धिरीश्वरप्रणिधानात 2/45 गोयन्दका हरिकृष्णदास (संवत् 2076) पातंजल योगदर्शन (प्रथम संस्करण) गीता प्रेस गोरखपुर

ऽ स तु दीर्घकालनैरन्तर्यसत्काराऽऽसेवितो द्रढ़भूमिः 1/14 गोयन्दका हरिकृष्णदास (संवत् 2076) पातंजल योगदर्शन (प्रथम संस्करण) गीता प्रेस गोरखपुर

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Published

30-09-2023

How to Cite

सेतवान, & उधम सिंह. (2023). सामाजिक कुरुतियों की रोकथाम में योग की प्रासंगिकता. RECENT RESEARCHES IN SOCIAL SCIENCES & HUMANITIES, 10(3), 41–45. Retrieved from https://ijorr.in/ojs/index.php/rrssh/article/view/99