प्राचीन भारतीय अवधारणा में पशु-पक्षी: एक दृष्टि
Keywords:
ईहामृग, रूद्र गण, द्विमूर्धाषकुनि, पीठ, कमलासन, सिंहासन, वाहनAbstract
भारतीय परम्परा मे ं यह बात निहित रही ह ै कि मनष्ु य का े सभी जीवित प्राणियांे के प्रति सम्मान और दया का व्यवहार करना
चाहिए। यह भी माना जाता है कि मनुष्य स्वयं अपन े कर्मांे के आधार पर विभिन्न याने ी मंे पुनर्जन्म लेता है। उसी प्रकार
घर मंे रखे जाने वाले पालतु जीव-जन्तुआंे के साथ अक्सर एसे ा व्यवहार किया जाता है कि वे परिवार का सदस्य हांे।
आदिकाल से पषु पजू ा मुख्य रूप से विषष्े ा अवसरों पर और दैनिक जीविका के लिए देवताओं को प्रसन्न करने के लिए
धार्मिक अनुष्ठानों से संबंधित रही है। वहीं प्राचीन भारत में बौद्ध और जैन धर्म के उदय के साथ साथ अहिंसा और जानवरों
के प्रति सम्मान की एक और व्यापक अवध्पाारणा को विशष्े ा रूप से अपनाया गया। भारतीय परम्परा मं े पषु को विशिष्ट
स्थान दिया गया है और उसे विषिष्ट स्वरूप के दवे ता के वाहन के रूप मं े दर्शाया गया है। चंूकि देवता की सवारी या
वाहन देवता की शक्तियांे का े दोगुना करने का कार्य करता है। वस्तुतः वाहन भक्त के मन का प्िर तनिधित्व करता है, जो
देवता का े भक्त की आरे का मार्गदर्षन करता है।
DOI: 10.5281/zenodo.10445046
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